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स्वयं सहायता समूह की महिलाएं पलाश, गेंदा, चुकंदर और हरी पत्तियों से बना रही हर्बल गुलाल
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बाजार में बढ़ी हर्बल गुलाल की मांग, हर साल महिलाएं कमा रही हैं 1 से 1.5 लाख रुपये
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ब्लॉक कार्यालय के बाहर लगेगा स्टॉल, सुरक्षित और प्राकृतिक रंगों से होगी होली
Women Empowerment in Paonta: होली रंगों का त्योहार है, लेकिन बाजार में मिलने वाले केमिकल युक्त रंग त्वचा, आंखों और बालों के लिए हानिकारक होते हैं। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए पांवटा की स्वयं सहायता समूह की महिलाएं पिछले चार वर्षों से प्राकृतिक हर्बल गुलाल बना रही हैं। इससे लोगों को सुरक्षित होली खेलने का अवसर मिल रहा है, साथ ही इन महिलाओं की आमदनी भी बढ़ रही है।
प्राकृतिक चीजों से बनता है हर्बल गुलाल
स्वयं सहायता समूह की सदस्य सुचित्रा बताती हैं कि वे गुलाल बनाने के लिए पलाश, गेंदा, चुकंदर, हरी पत्तियां और नीलकंठ फूलों का उपयोग करती हैं। इनसे पहले रंग निकाला जाता है, फिर अरारोट पाउडर को इन रंगों में मिलाकर हर्बल गुलाल तैयार किया जाता है।
गुलाल बनाने की प्रक्रिया
फूलों को सुखाना – पहले फूलों को तोड़कर अच्छी तरह सुखाया जाता है।
रंग निकालना – सूखे फूलों को पानी में उबालकर या पीसकर रंग निकाला जाता है।
अरारोट में मिलाना – प्राकृतिक रंग को अरारोट पाउडर में मिलाया जाता है।
धूप में सुखाना – तैयार मिश्रण को धूप में सुखाया जाता है।
गुलाल तैयार करना – सूखे मिश्रण को मिक्सर में पीसकर छाना जाता है और सुगंध के लिए इसमें इत्र मिलाया जाता है।
बढ़ रही हर्बल गुलाल की मांग
इन महिलाओं द्वारा बनाए गए हर्बल गुलाल की मांग क्षेत्र में काफी ज्यादा है। हर साल ये महिलाएं 1 से 1.5 लाख रुपये तक की कमाई कर रही हैं। लोग पहले से ही ऑर्डर देकर शुद्ध और सुरक्षित गुलाल खरीदते हैं।
ब्लॉक कार्यालय के बाहर लगेगा स्टॉल
इस बार भी इन महिलाओं द्वारा ब्लॉक कार्यालय के बाहर स्टॉल लगाया जाएगा, जहां लोग हर्बल गुलाल खरीद सकेंगे। महिलाओं का कहना है कि इस पहल से उनकी आमदनी में वृद्धि हो रही है और लोग भी सेफ और हेल्दी होली खेल रहे हैं।
पांवटा की इन महिलाओं की यह पहल समाज के लिए एक मिसाल बन रही है। इनका उद्देश्य सिर्फ आमदनी कमाना नहीं, बल्कि लोगों को केमिकल मुक्त, प्राकृतिक और सुरक्षित रंग उपलब्ध कराना भी है, जिससे होली का असली आनंद बिना किसी नुकसान के लिया जा सके।